डॉ. इन्द्रेश मिश्रा
आखिर महिला पहलवानों ने अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीते गये मेडलों को गंगा में प्रवाहित करने का फ़ैसला ले लिया था, लेकिन जद्दोजहद के बाद भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने उन मेडलों को गंगा में विसर्जित होने से बचा लिया, यह वादा करते हुये कि वह उन सभी को जल्द न्याय दिलायेंगे। यदि पानी सिर के ऊपर से निकल जाता है तब ही कोई इस तरह का फ़ैसला लेने को मजबूर होता है।
अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्णिम चमक बिखेरने वाली महिला पहलवान शोषण के खिलाफ जांच की मांग को लेकर वापस धरने पर बैठी थी, नव संसद के उद्घाटन पर विरोध मार्च करने जा रहीं थी तो केंद्र की भाजपा सरकार को इसकी गंभीरता को समझना जरूरी था , लेकिन नही समझा गया।
सम्पूर्ण देश के अंदर राजनीति में क्या-क्या हो रहा है, देश के नागरिकों की जन समस्याओं और उनका निस्तारण कैसे करना है। जन भावनाओं और जनप्रतिभा पर पैनी नज़र रखने वाले प्रधानमंत्री जी इन्ही सब बातों को तो ‘मन की बात’ में कहते है। फिर आखिर ऐसी क्या मजबूरी या खासियत है आरोपित व्यक्ति में। कि महिला पहलवानों की व्यथा को अनसुना कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुमूल्य तमगों को जीतने वाले जीवट कोई मायने नही रखते? क्या उनकी बात नहीं सुनी जानी चाहिए?
कथित यौन शोषण के खिलाफ महिला रेसलर, प्रशासन तक अपनी आवाज पंहुचानें और न्याय के लिए जंतर-मंतर पर धरना दे रही थी। जब यथोचित सुनवाई न हुई तो मजबूरन नयी संसद के उद्घाटन वाले दिन ही मार्च निकालने का फ़ैसला ले लिया। नतीजा महिला और समर्थन दे रहे पहलवानों को मार-पीट कर और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धारायें लगाकर उनके धरने और विरोध मार्च को कुचल दिया गया। यह कहकर कि पहलवान कानून का उल्लंघन कर रहे थे।
भारत के यशश्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय एथलीट, विशेष रूप से ओलंपिक पदक और अन्य वैश्विक प्रतियोगिताओं को जीतने वाले खिलाड़ियों को मान-सम्मान करने में हमेशा आगे रहते हैं।
विपक्षी, घोर विरोधी और उनके आलोचक भी यह स्वीकारते है कि वे खेल में पदक जीतने वाले श्रेष्ठ, अतिश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ फोटो खिंचवाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। हालातों को अवसर में बदलने वाले देश के प्रधानमंत्री ने आमजन में एक ऐसी छवि उकेरी है जो खेलप्रेमी भी है, जो जानता है कि खिलाड़ियों को सम्मान किस तरह दिया जाता है। जिससे उनका मनोबल बढ़े और देश के लिए और पदक जीत कर ला सकें। अपनी छवि के अनुरूप पदक जीतकर लौटे खिलाड़ियों को उन्होंने समय-समय पर घर बुलाकर दावत दी और प्रोत्साहित भी किया। जिसको आमजनता ने मीडिया के विभिन्न माध्यमों से देखा, पढ़ा और सुना भी।
इतना सब कुछ होते हुए भी जनता किंकर्तव्यविमूढ़ है इस बात को लेकर कि आखिर पहलवानों के विरोध पर उनका नजरिया क्या है, चुप क्यों है हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी, आखिर उस सांसद को लेकर उनकी मजबूरी क्या है, जो आरोपित है। क्योंकि इस मसले पर उनकी तरफ से एकदम चुप्पी है। ऐसा तब है जब विरोध प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों ने विनती की है कि वे उनकी बात तो सुन लें।
समझना होगा कि यह पहला मौका नहीं है जब खेल प्रशासक, कोच और कप्तानों पर यौन शोषण के गन्दे आरोप लगे हों। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बीते 10 साल के दौरान खेल प्राधिकरण (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के विभिन्न परिसरों में कम से कम 40 ऐसी शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। ऐसा ही एक आरोप जब हरियाणा के एक मंत्री और पूर्व में हॉकी कप्तान रह चुके संदीप सिंह पर लगा था और उन्हें इसी कारण मंत्रालय से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
मीडिया से बात करते हुए देश के लिए रेसलिंग में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहला पदक जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक रो पड़ती हैं। वे कहती हैं, “हमारी बात कोई नहीं सुन रहा, हमें तो झूठा साबित किया जा रहा है।”
वर्तमान केंद्रीय खेल मंत्री की दिलासा, क्यों नहीं जीत सका खिलाड़ियों का भरोसा?
महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद 66 वर्षीय बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए हैं। बीजेपी सांसद के बारे में अधिक जानकारी भारतीय निर्वाचन आयोग की वेबसाईट पर 2019 के आम चुनावों मे उनके द्वारा दिये गये शपथ पत्र से जान-समझ सकते है। (https://affidavit.eci.gov.in/show-profile/)
यह महिला रेसलर इसी वर्ष जनवरी में धरने पर बैठी थीं, तब केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने यह भरोसा देकर उन्हें मना लिया था कि एक कमेटी बनाई जाएगी जो आरोपों की जांच कर सच्चाई का पता लगायेगी। इस बाबत छह सदस्यों वाली एक कमेटी बनाई भी गई थी, जिसकी अध्यक्षता मशहूर बॉक्सर एम सी मेरीकॉम (बीजेपी द्वारा नामित सांसद भी हैं) को सौंपी गई थी। इस कमेटी में एक अन्य मशहूर एथलीट और भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी ऊषा भी शामिल हैं। इस कमेटी ने अप्रैल के पहले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट केंद्रीय खेल मंत्रालय को सौंप दी थी।
कमेटी में खेलों से जुड़े दिग्गज खिलाड़ियों के नाम होने के बावजूद भी महिला पहलवानों ने अहसास कर रहे थे कि कमेटी ने जांच के दौरान कुछ अलग ही रवैया अपना रखा था। आरोप है कि कमेटी के सदस्यों ने जांच के बारे में कुछ चुनिंदा जानकारियां मीडिया के साथ साझा कीं। इतना ही नहीं, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और 6 बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के नजदीकी लोग प्रदर्शन करने वाली महिला पहलवानों और उनके परिवार के सदस्यों को फोन कर धमकी भी दे रहे थे कि अगर इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने से पीछे नही हटे तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
महिला पहलवानों ने मामले में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने इसमें जांच का बहाना कर इसे लटका दिया, जिसके बाद इन्हें न्याय के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाना पड़ा। मामले पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ के सामने कहा कि, ‘एफआईआर दर्ज करने के लिए कुछ खास मुद्दों की प्राथमिक जांच जरूरी है।‘
जानिये क्या हुआ जांच रिपोर्ट का?
लेकिन विडंबना यह है कि जांच कमेटी सदस्य ने खेल पत्रिका स्पोर्ट्स्टार को बताया कि जो अंतिम रिपोर्ट खेल मंत्रालय को अप्रैल माह की शुरुआत में सौंपी गई थी, उस पर उन्होंने हस्ताक्षर तो किए लेकिन उन्हें रिपोर्ट पूरी नहीं पढ़ने दी गई।
उन्होंने कहा, “मुझे पूरी रिपोर्ट नहीं पढ़ने दी गई और मैंने इस पर आपत्ति भी जताई थी। रिपोर्ट बीती 5 अप्रैल को मंत्रालय को भेज दी गई, लेकिन मुझे पता है कि मैंने जो आपत्तियां पहले उठाई थीं, उन्हें रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है।”
उन्होंने आगे कहा कि जब कमेटी से इन मुद्दों पर बात की गई तो कहा गया कि ऐसा नहीं हुआ। कमेटी ने कथित तौर पर उन गंभीर मुद्दों पर कोई सुझाव भी नहीं दिया है, जिन्हें विरोध कर रहे पहलवानों ने उठाया है।
भारतीय कुश्ती संघ कहता है कि ऐसी शिकायतों के लिए एक शिकायत निवारण समिति है। साथ ही उसका कहना है कि पहलवानों ने इस कमेटी से संपर्क ही नहीं किया था।
पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी समाज और सामाजिक ठेकेदारों से पटे पड़े इस समाज मे महिलाओं के लिए ऐसी शिकायतों को सार्वजनिक करना आसान भी नहीं है। सर्व विदित है कि ऐसी निवारण संस्थाओं मे शिकायतों का निस्तारण कैसे किया जाता है। ऐसे एथलीट जो खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं या खेल को अपना करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए अपने कोच या संरक्षक के खिलाफ जाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इससे उनके पूरे खेल करियर पर विराम लग सकता है। खिलाड़ियों को जिस तरह का समर्थन मिलता है, ऐसे में इस जोखिम को उठाना आसान भी नहीं है। इस सबके बावजूद अगर महिला पहलवान शोषण के खिलाफ जांच की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं, तो इसकी गंभीरता और भविष्य में आने वाले परिणाम को देशवासियों को समझना जरूरी है। क्या कोई माता-पिता अपनी बेटियों को कुश्ती या अन्य खेलों को खेलने के लिए प्रेरित करेगा? अब तो सुननी ही होगी माननीय प्रधानमंत्री जी ‘पहलवानों और अन्य खेलों-संस्थाओं में महिलाओं के ‘तन के शोषण की बात’ ! सच या झूठ? अगर सिस्टम में ऐसा चल रहा है तो क्यूँ ?