डॉ. इन्द्रेश मिश्रा, सम्पादक
भारत में विश्व का सर्वाधिक पशुधन है। भारत में 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है। इस पशुधन जनगणना में वर्ष 2018 की जनगणना की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है। उपरोक्त तथ्यों पर गौरवान्वित होने के बावजूद-
भ्रष्टाचार, बिजली, सड़क, पानी, महंगाई, कम होती नौकरियां, जैसे मुद्दों का सामना कर रहे जनमानस को ग्रामीण क्षेत्रों में छुट्टा या अन्ना जानवरों की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। किसान हजारों-लाखों रुपये तारों, जाली और कांटे आदि को खरीदने में ही व्यय कर रहें हैं। बावजूद इशब के बेचारे किसान दिन-रात जागकर खेतों में रहकर भी छुट्टा/अन्ना जानवरों से अपनी फसल नहीं बचा पाते हैं। पूरी फसल ये मवेशी ही चट कर जा रहे है। हरदोई जिले के हरियावां के किसान राकेश बताते है 4 बीघे में मात्र 90 किलो ही गेहूं मिल पाया, कैसे साल पार होगा भगवान जानें, तारबंदी के बावजूद भी फसल न बच सकी। यहीं के गन्ना किसान श्यामसेवक मिश्रा भी अपनी व्यथा बता रहे है कि रात-दिन खेतों में दौड़ लगानी पड़ती है, खेतों में रोज 10-15 किलोमीटर का चक्कर हो जाता है, जिससे फसल बच सके। फसल न बच पा रही लेकिन इस भागम-भाग में शारिरिक रूप से जरूर स्वस्थ हो गया हूं। कितनी भी सुरक्षा करो लेकिन अन्ना जानवर गन्ने की पौध खा ही जाते है, जिससे फिर लागत और समय बढ़ जाता है। नतीजतन उत्पादन न के बराबर हो रहा है। यह छुट्टा जानवर किसके है? पूछने पर श्याम सेवक कहते है कि सभी जानते है कि ये जानवर हम सभी के परिचितों के है लिकिन सामाजिक ताना-बाना ऐसा है कि आपसदारी में किसी की कोई शिकायत नही कर पाता। वहीं यदि किसी से कह दो कि अपना जानवर क्यों नही बांधते? तो उत्तर मिलता है कि सभी के छुट्टा है तो हमारे भी है। कुल मिलाकर आवारा जानवर एक बड़ी समस्या है। ऐसी नौबत क्यों आयी, जनता हो या सरकार सबके अपने अपने तर्क है पर जबाब किसी के पास नही है।
वृहद् स्तर पर अन्ना मवेशी या छुट्टा जानवरों का पैदाइश केंद्र कहां है?
घर के खूटें और चन्नी पर बंधने बाली दुधारू पालतू गाय जब दूध देना बंद कर देती है तब लोग उसको छोड़ देते है। छोड़ने का यह चलन लगभग सभी गांवों में देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिक युग में खेती-किसानी में भी तकनीकी का भरपूर प्रयोग किया जाने लगा है। खेती का पूरा काम मशीनों से होने लगा है। नतीजा बछड़े जो उम्र के साथ बैल बन जाते है की उपयोगिता खत्म, जानवरों के चारे पर बढ़ते बजट की बजह से उनको छुट्टा छोड़ दिया जाता है यह जानवर छुट्टा जानवर के रूप में पहचाने जाते है। यही छोड़े हुये पालतू जानवर, आवारा जानवरों में शामिल हो जाते हैं, नतीजतन भूख से बिलबिलाये ये जानवर खेतों में लगी फसलों को चट कर जाते है। हमारे-आपके बीच मौजूद यही तथाकथित सामाजिक लोग जिनको लगता है कि उन्होंने तो अपने जानवरों से निजात पा चुके है पर हकीकत में ये मेहनतकश किसानों के लिए मुसीबत बन जाते है। वर्ष 1919-20 से देश में समय-समय पर पशुधन की गणना आयोजित की जाती है। तब से प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार यह गणना आयोजित की जाती है। स्रोत: pib
20वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक, देशभर में 50.21 लाख छुट्टा गाय-बैल बेसहारा सड़कों पर घूम रहे हैं. इस लिस्ट में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का नाम टॉप पर है। देखें आंकड़े।
पशुधन की जनगणना रिपोर्ट
देश में आवारा पशुओं के हालातों को लेकर 20वीं पशुधन जनगणना की रिपोर्ट से सामने आया है कि देश में करीब 50.21 लाख छुट्टा गाय-बैल हैं. सबसे ज्यादा संख्या राजस्थान में 12.72 लाख, उत्तर प्रदेश में 11.84 लाख, मध्य प्रदेश में 8.53 लाख, गुजरात में 3.44 लाख, छत्तीसगढ़ में 1.85 लाख, महाराष्ट्र में 1.52 लाख, उड़ीसा 1.51 लाख, पंजाब में 1.40 लाख, हरियाणा में 1.28 लाख, पश्चिम बंगाल में 1 लााख बेसहारा गौवंश हैं. इस लिस्ट में कुल मिलाकर 10 राज्यों को शामिल किया गया है, जिसमें सबसे ज्यादा आवारा पशुओं की तादात है।
23 राज्यों में 25 लाख पशु बेसहारा
पशुपालन और डेयरी विभाग की रिपोर्ट से पता चला है कि करीब 10 राज्यों में छुट्टा गौवंश की संख्या ज्यादा है। वहीं 23 राज्य ऐसे भी हैं, जहां कुल मिलाकर 5 लाख से भी कम पशु बेसहारा है। इसमें आंध्र प्रदेश, असम, चंडीगढ़, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडू, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा आदि हैं, जहां आवारा गौवंशों की संख्या 4 लाख 96 हजार 951 है।
यही छुट्टा जानवर जनता के साथ-साथ प्रदेश सरकार के लिए भी एक बड़ी समस्या बन गये है। आवारा-छुट्टा पशुओं की आंतक भी तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश के कई गावों-कस्बों, सड़कों पर तो आवारा पशुओं का आतंक इतना बढ़ गया है कि आए दिन किसी न किसी को सींगों से उठाकर पटक देते है या कोई ना कोई दोपहिया या चारपाहिया वाहन सवार, सड़कों पर इन आवारा जानवरों की चपेट मे आने से दुर्घटना का शिकार हो जाता है।
उत्तर प्रदेश की भाजपा की योगी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस विकराल समस्या के समाधान के लिए योजनाओं का पिटारा खोल रखा है। जहां आवारा जानवरों को संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि भी दे रही है, वहीं सख्त कदम उठाने की विभिन्न योजनायें फाइलों में होते हुए भी धरातल से नदारद ही दिख रही है। इन गाय-बैलों को झुंड के लिए गौशाला का इंतजाम किया जा रहा है। एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यूपी में 6,000 से अधिक गौशालाओं की व्यवस्था राज्य सरकार ने कर रखी है। इन पशुओं के चारे के इंतजाम के लिए 30 रुपये प्रति पशु के हिसाब से अनुदान भी देती है।
जानवरो की संख्या अब इतनी बढ़ रही है कि गौशालाएं तक छोटी पड़ती जा रही हैं। चारे के लिए मिलने वाली राशि कम होने की वजह से भी संचालक आवारा जानवरों को गौशालाओं मे रखने में आनाकानी करते हुये देखे जा सकते है। 20वीं पशुधन जनगणना से पता चला है कि देश में अब आवारा-छुट्टा गौवंशों की संख्या 50 लाख से अधिक है। वहीं इस मामले पर किसान तक की रिपोर्ट में केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के हवाले से बताया गया है कि देश के करीब 50 फीसदी आवारा जानवर, गाय-बैलों ने तो राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सडकों और खेत-खलिहानों को घेरा हुआ है। आवारा पशुओं का बड़ा कारण गौशालाएं नहीं होना और जो गौशलाएं है वहां पर व्यवस्था नहीं होना। अगर किसान जानवरों को पकड़ कर गौशालाओं में पहुंचा देते है तो रात में गौशाला वाले उन जानवरों को छोड़ देते है।
जानिए निराश्रित गौ वंश को लेकर क्या कर रही है उत्तर प्रदेश सरकार-
उतारी अधिकारियों की फौज- गत महिनें मुख्यमंत्री योगी ने यूपी को अन्ना जानवरों की समस्या को खत्म करने के इरादे से बेसहारा गायों की उचित देखभाल करने के सख्त निर्देश दिए थे। उन्होंने सड़कों पर बेसहारा गोवंश न दिखे, इसके लिए यूपी के समस्त जनपदों में 75 आईएएस अफसर (प्रत्येक जिले में एक) तैनात करने के बाद इन अधिकारियों को धरातल पर उतार कर बेसहारा गोवंश को गो आश्रय स्थलों में पहुंचाने के साथ-साथ निगरानी की भी जिम्मेदारी दी थी।
आवारा पशुओं को संरक्षण देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर-
- गोवंश संवर्धन के लिए 1681 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
- वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से बताया गया कि भाजपा की योगी के नेतृत्व वाली सरकार ने गोवंश के भरण-पोषण के लिए भूसा संग्रहण एवं गो आश्रय पोर्टल (https://up.goashray.in/) भी बनाया है।
छुट्टा गौवंश को मिली 6800 गौशालाओं में पनाह
अभी तक मिली जानकारी के आधार पर पशुपालन विभाग ने छुट्टा गोवंश संरक्षण को लेकर चलाए जा रहे अभियान की उपलब्धियों के बारे में यूपी के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र के समक्ष आंकड़ों के हवाले से बताया है कि-
- गत 31 मार्च तक इस मिशन में 1681.61 करोड़ रुपए खर्च करके 11 लाख 57 हजार 204 बेसहारा गोवंश को संरक्षण प्रदान किया गया है।
- राज्य सरकार ने ‘मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना’ के तहत विकसित ‘गो-आश्रय पोर्टल’ पर इससे संबंधित तथ्य अपलोड करने के लिए 1 सप्ताह की समय सीमा निर्धारित की है। जिससे गौशालाओं के संचालन के लिए दिया जाने वाला जून का भुगतान, जुलाई के पहले सप्ताह में सुनिश्चित हो सके।
- विभाग की ओर से बताया गया कि प्रदेश में इस साल 31 मार्च तक 6066 अस्थाई गौशालाओं में 9,15,125 गोवंश को सुरक्षित पनाह दी गई।
- इसके अलावा 280 स्थाई एवं बड़ी गौशालाओं में 1.39 लाख गोवंश की, कान्हा गौशाला में 85,867 गोवंश एवं 328 कांजी हाउस में 17,156 गोवंश की उचित देखभाल हाे रही है।
- मुख्यमंत्री सहभागी योजना में 1.81 लाख गायों और ‘सुपुर्द गोवंश पोषण मिशन’ के अंतर्गत 3600 गायों का पोषण किया जा रहा है। कुल मिलाकर 11 लाख 57 हजार 204 गोवंश को पर्याप्त देखरेख में रखा गया है।
एक नया मिशन भूसे का समुचित इन्तजाम
पशुपालन विभाग की ओर से मुख्य सचिव को निम्नलिखित बिन्दुओं के बारे में भी बताया गया-
- यूपी में गायों के संरक्षण के लिए वर्ष 2023-24 में कुल 80 लाख कुंतल भूसा एकत्र करने का लक्ष्य तय किया गया है। जिसमे से 24 लाख कुंतल भूसा दान के माध्यम से और 56 लाख कुंतल भूसा खरीद कर जुटाया जाएगा।
- जानकारी दी गई कि विभाग को गत मार्च तक 3.077 लाख कुंतल भूसा दान में मिल गया था। जबकि 19.35 लाख कुंतल भूसा खरीद कर जुटाया जा रहा है। यह सालाना निर्धारित लक्ष्य का क्रमशः 12.79 प्रतिशत और 34.55 प्रतिशत है।
- मुख्य सचिव ने निर्देश दिया कि जिन जनपदों में भूसा खरीद, लक्ष्य से 10 प्रतिशत से कम है, उन जिलों में स्थानीय प्रशासन को भूसा खरीद में तेजी लाने को कहा गया हैं।
इतना होनै के बाद भी उत्तर प्रदेश में आवारा जानवरों पर सरकार से खफा क्यों है लोग ? उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोवंश की हत्या को लेकर कानूनों को कड़ा करते हुए 10 साल की सख्त सजा का प्रवाधान कर दिया है। इसके साथ भाजपा की योगी के नेतृत्व वाली सरकार ने गौवंश की तस्करी औऱ बूचड़खाने बंद करने के आदेश दे रखे है। वहीं उनको चलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई जिसके बाद छुट्टा जानवरों की समस्या का समाधान न जनता ढूँढ पा रही है और न ही धरातल पर उत्तर प्रदेश सरकार। अंत में बस इतना ही-
“मेरी भी सुनों,
मैं जैसे-तैसे रोटी चलाने वाला
गरीब, कर्ज में डूबा हुआ,
एक साधारण सा किसान हूं।
मेरी व्यथा क्या है, शायद नही पता।
रात भर जागता हूं दिन में भी नही सोता हूं।
नील गाय से तो पता नही कब का निजात पा गये,
पर ये न मालूम छुट्टा जानवर, कहां से आ गये।
मानना है मेरा कि गैरजिम्मेदाराना पशु-पालकों और
सरकार के रवैये को भी नजरअंदाज कर नही सकता।
क्यूंकि मैं सब कुछ समझता हूं आखिर जो ठहरा किसान हूं।”