अपने खुले विचार और तर्कसंगत फैसलों के लिए माने जाने वाले जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के 50वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने आज उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। कुछ दिन पहले ही अपने पद से सेवानिवृत्त होने वाले चीफ जस्टिस यूयू ललित ने उनके नाम की सिफारिश भेजी थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दो साल के लिए देश के अगले चीफ जस्टिस होंगे, वह सुप्रीम कोर्ट के 50वें चीफ जस्टिस बने। बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ अपने कई महत्वपूर्ण फैसलों के लिए जाने जाते हैं।
कौन हैं धनंजय यशवंत चंद्रचूड़
जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के घर हुआ था। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी करने के बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर की और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने देश समेत कई विदेशी लॉ स्कूल्स में कानून एवं न्याय संबंधी लेक्चर दिया, जिसे बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
अपने मजबूत फैसलों और तर्क संगत राय रखने के लिए मशहूर जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ऐसे कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिसने समाज और देश की बहुतायत आबादी को प्रभावित किया है। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ कई संवैधानिक बेंचों के फैसलों में अपने साथी जजों से भिन्न राय रखते हैं वह कहते हैं कि लोकतंत्र में असहमति सेफ्टी वाल्व की तरह काम करता है।
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के महत्वपूर्ण फैसले
–जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ वर्षों से लंबित राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला सुनाने वाले 5 जजों की बेंच में शामिल थे।
–उन्होंने हाल के वर्षों में दिए गए महत्वपूर्ण फैसले जिनमें धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज करना
–सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाली बेंच में शामिल रहे
–अविवाहित समेत सभी महिलाओं को भी गर्भपात करने के अधिकार दिलाने जैसे निर्णायक फसलों में अहम भूमिका निभाई है।
–नोएडा के अवैध ट्विन टावर को हाल ही में गिराया गया था। टावर को अवैध ठहराने और उसे गिराने वाली सुप्रीम कोर्ट की जजों की बेंच में भी जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ रहे
अपने पिता के फैसले को भी पलट चुके हैं जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ अपने पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसलों को पलटने के लिए भी सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने निष्पक्षता और पारदर्शिता को न्यायिक प्रणाली के लिए अहम मानते हुए भूतपूर्व चीफ जस्टिस एवं अपने पिता के व्यभिचार व मौलिक अधिकार पर दिए गए फैसलों को पलट दिया था। दरअसल उनके पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ ने इमरजेंसी के दौरान मौलिक अधिकारों को भी जब्त करने का फैसला सुनाया था, जिसे 2017 में नौ जजों की संवैधानिक बेंच ने इस फैसले को पलट दिया था। न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ भी इस बेंच में शामिल थे। टिप्पणी करते हुए संवैधानिक बेंच ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। बेंच ने 40 साल पुराने आदेश को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताया था और उस बेंच में असहमति जताने वाले एकमात्र जज एच.आर. खन्ना की प्रशंसा की थी।
एडल्ट्री लॉ का फैसला भी पलटा
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता के दूसरे फैसले को भी 2018 में पलट दिया था। उनके पिता ने एडल्ट्री को असंवैधानिक माना था। एडल्ट्री का तात्पर्य यह है कि जब कोई महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है, तो पहले के कानून के मुताबिक संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ, उस महिला के पति के द्वारा मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता था, लेकिन महिला के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती थी। इसी कानून को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया गया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है। इस बेंच में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ में शामिल थे, फैसले में कहा गया था की एडल्ट्री अब अपराध नहीं है केवल तलाक का आधार हो सकता है।