सुप्रीम कोर्ट में चल रहे 10 फीसदी आरक्षण के मुद्दे पर आज अंतिम फैसला आ गया है, जिसमें इसे मंज़ूरी दे दी गई है। इस केस की सुनवाई जीफ जस्टिस की 5 जजों वाली बेंच कर रही थी जिसमें जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने इसका समर्थन किया है वही जस्टिस रविंद्र भट्ट और खुद चीफ जस्टिस यूयू ललित ने आरक्षण का विरोध किया है।
इस मुद्दे की शुरूआत तब हुई थी जब 2019 के चुनाव से पहले मोदी सरकार ने ये फैसला लिया कि वे सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देंगे, सरकार ने संविधान में 103वां संशोधन किया था जिसके चलते आरक्षण मिल सके लेकिन सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण देने के खिलाफ 40 याचिकाएं दर्ज हुई थी। इस मुद्दे पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था। इस मुद्दे पर सभी जजों की अपनी अलग राय है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी का कहना है कि जो लोग इस समाज का हिस्सा नहीं है या इससे दूर है उनके लिए आरक्षण एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है जिससे उन्हें फिर से समाज का हिस्सा बनाया जा सके और जो लोग आर्थिक व सामाजिक रूप से कमज़ोर है आरक्षण की वजह से उन्हें भी राहत मिलती है। उनका कहना है कि EWS कोटा होने से संविधान के किसी मूल का उल्लंघन नहीं होता है। वही 2 और अन्य जजों ने भी आरक्षण का समर्थन करते हुए यही बातें दोहराई है।
लेकिन जस्टिस रविंद्र भट्ट और चीफ जस्टिस यूयू ललित ने इसका विरोध जताते हुए कहा है कि इस आरक्षण का फायदा जिसे मिलना चाहिए था उसे नहीं मिल रहा यानि एसटी, एससी और ओबीसी के गरीब लोगों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा और उनके साथ भेदभाव हो रहा है जो हमारे संविधान के मूल्य के खिलाफ है।