अंतरराष्ट्रीय

सीरम क्रिएटिनिन के बढ़ने के साथ न्यूरोलॉजिकल दुर्बलता का मरीज हो सकता है स्वस्थ-डॉ. लुबना कमल

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में होम्योपैथी द्वारा रीनल फेल्योर के उपचार पर शोध पत्र किया गया प्रस्तुत

लखनऊ। हैनिमैन कॉलेज ऑफ होम्योपैथी, बर्कशायर- यूनाइटेड किंगडम ने 24 नवंबर 2022 को होटल रेग्नेंट, लखनऊ, भारत में अपना दीक्षांत समारोह और सेमिनार आयोजित किया।

कॉलेज के निदेशक और प्राचार्य, डॉ शशि मोहन शर्मा लखनऊ शहर से जुड़े हुए हैं। इससे पहले समारोह इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा आदि सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हुए हैं।

डॉ. चार्ल्स हैनीमैन, जो होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. सीएस हैनिमैन के प्रपौत्र हैं, कॉलेज के मुख्य संरक्षक हैं। पूरे भारत भर से 35 छात्रों को होम्योपैथी में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री या एमडी के समकक्ष पीजी होम की डिग्री से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर भारत के सभी हिस्सों से छात्र, प्रतिनिधि, अतिथि और वक्ता उपस्थित थे।

लखनऊ की डॉ. लुबना कमल ने भी क्रोनिक रीनल फेल्योर पर अपना पेपर प्रस्तुत किया। वह और उनकी क्लिनिक की पांच शाखाओं में डॉक्टरों की टीम ने सीकेडी, सीआईएन, सीआरएफ और ईएसआरडी सहित बीमारी के विभिन्न चरणों के 20,000 से अधिक रोगियों का इलाज किया है।

उन्होंने संगोष्ठी में अपने दो जीवित मरीज़ भी प्रस्तुत किए जहां रोगी स्वयं उपस्थित थे। एक 72 वर्षीय मरीज को सेरेब्रल वैस्कुलर एक्सीडेंट या पक्षाघात और उसे केजीएमयू, लखनऊ में भर्ती कराया गया था। वह सीरम क्रिएटिनिन के बढ़ने के साथ न्यूरोलॉजिकल दुर्बलता के साथ बेहोश था। मरीज की हालत धीरे धीरे खराब हो रही थी और डॉक्टरों ने मरीज को लाइफ सपोर्ट पर रखने और डायलिसिस करवाने की सलाह दी। मरीज की भतीजी राजकीय पीजेएलएन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, कानपुर में पढ़ती है जहां डॉ लुबना कमल सहायक प्रोफेसर हैं। परामर्श के बाद होम्योपैथिक दवाएं मौजूदा उपचार के साथ दी गईं और रोगी धीरे-धीरे ठीक होने लगा। 7 से उसका क्रिएटिनिन कुछ ही महीनों में सामान्य हो गया और रोगी स्वस्थ हो गया। वह उन्नाव से खुद चलकर सेमिनार में आए थे।

दूसरा लाइव केस संत कबीर नगर के एक 28 वर्षीय लड़के का था, जिसने कई महीनों तक काम की वजह से धूप में रहने के कारण भारी मात्रा में पेप्सी कोक का सेवन किया था । इस वजह से 2020 में उसके गुर्दे खराब हो गए तथा क्रिएटिनिन बढ़ कर 13 हो गया था। उसी साल उनको ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा था। जल्द ही उनका क्रिएटिनिन फिर से बढ़ना शुरू हुआ और 6 तक पहुंच गया। डॉक्टरों ने डायलिसिस और फिर से प्रत्यारोपण के लिए प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव दिया। रोगी को होम्योपैथिक दवाएं दी गईं जिससे न केवल क्रिएटिनिन का स्तर कम हुआ बल्कि रोगी की सामान्य स्थिति में इतना सुधार हुआ कि रोगी की इसी महीने उनकी शादी हो गई।

होम्योपैथी के इसी तरह के चमत्कारों को इंदौर के डॉ ए के द्विवेदी ने अप्लास्टिक एनीमिया पर, डॉ मनजीत सिंह ने कैंसर पर, डॉ रेणु महेंद्र और डॉ कविता ने स्त्री रोग पर, डॉ जय वर्मा ने गुर्दे की पथरी पर साझा किया को सेमिनार के सह-आयोजक भी थे।

सम्मेलन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मीडिया द्वारा बहुत अच्छी तरह से कवर किया गया। अधिक से अधिक होम्योपैथ को आगे आना चाहिए और होम्योपैथी को न केवल सबसे सुरक्षित और सौम्य उपचार के रूप में बल्कि उपचार की पहली पंक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए अपनी सफलता की कहानियों को प्रकाशित करना चाहिए।

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