उत्तराखंड देहरादून

(पॉडकास्ट) गांव में जल संचय और वृक्षारोपण की संघर्षपूर्ण यात्रा

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चकराता (देहरादून), हमारे गांव में एक समय ऐसा था जब हम लोग पूरी तरह से जंगल के बीच में रहते थे, और हमारे पास जल स्रोतों की कमी थी। हमारे गांव के बीच में एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिनका नाम गुरुजी था।
उनके दादाजी, कृपाराम जोशी, जो एक शिक्षाविद् थे, उन्होंने हमें एक विचार दिया कि अगर हम जंगल बनाएंगे, तो उससे गांव में पानी की समस्या हल हो सकती है।
गुरुजी ने हमें एक मीटिंग में बुलाया और कहा कि हम गांव के लोग मिलकर जंगल बनाएंगे ताकि पानी का प्रवाह अच्छा हो सके। मीटिंग में सभी ने इस विचार को समर्थन दिया और हम ने मिलकर कई पेड़ लगाए।
हालांकि, शुरुआत में हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। कुछ पेड़ सूखने लगे, और हमें यह समझ में आया कि हमें कुछ और कदम उठाने होंगे।
हमने तार की बाड़ लगाई, लेकिन फिर भी हमारे खुद के पशु जंगल में आकर पेड़ नुकसान पहुँचाते थे। इस स्थिति को देखते हुए, हमारे गांव के कुछ परिवारों ने चौकीदार नियुक्त किया, ताकि हम जंगल की रक्षा कर सकें।
हमने चौकीदार की ड्यूटी तय की और इसके बदले उसे वेतन दिया। धीरे-धीरे, यह उपाय काम करने लगा और जंगल में पेड़ पनपने लगे।
बाद में, हमें गुरुजी से एक और सुझाव मिला – उन्होंने कहा कि हम जंगल में ट्रेंचिंग करें, जिससे बारिश का पानी ठीक से संचित हो सके। इस प्रक्रिया ने भी हमारी मदद की और जंगल में पेड़ और पानी दोनों बढ़ने लगे।
हमने यह भी देखा कि पेड़ लगाने से पानी की कमी में कमी आई और नतीजे में हमें काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले।
गांव में अब यह एक सामान्य बात हो गई थी कि हर परिवार को इस काम में शामिल किया गया। गांव की पंचायत ने यह तय किया कि हर परिवार को पेड़ और जंगल की देखभाल करनी होगी। इससे गांव में एक सामूहिक प्रयास बना और हम सबने मिलकर अपने जंगल की रक्षा की।
अब, सालों बाद, हमारे जंगल का हाल यह है कि जब भी कोई पशु आता है, हमें कोई समस्या नहीं होती। हम हर तीन साल में पेड़ों की देखभाल और काटाई करते हैं ताकि वे स्वस्थ रहें। अब जंगल का माहौल इतना समृद्ध हो गया है कि हम अपने आसपास के इलाके को देखकर गर्व महसूस करते हैं।
यह संघर्ष, समर्पण और सामूहिक प्रयास का परिणाम था कि हमारा जंगल धीरे-धीरे हरा-भरा और समृद्ध हुआ। आज हमारा गांव एक प्रेरणा बन चुका है, जहां पर हम सब मिलकर अपने पर्यावरण की देखभाल करते हैं।

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