व्लादिमीर पुतिन रूस की राजनीति पर पिछले दो दशकों से हावी हैं. अपने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने रूस के आर्थिक उछाल, सैन्य विस्तार और प्रमुख ताकत के तौर पर रूस की पुन: स्थापना की निगरानी की है.
रूस के अधिकतर लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ और उनमें स्थायित्व और राष्ट्रीय गर्व की भावना ने जन्म लिया. लेकिन, जैसे कि कई लोग कहते हैं कि रूस को इसकी कीमत अपने लोकतंत्र को खोकर चुकानी पड़ी.
इस समय पर आम रूसियों के लिए जिंदगी कितनी बदल गई है.
1. बहुत कम लोग गरीब
गरीबी का स्तर पहले की तुलना में काफी कम हो सकता है, लेकिन रूस अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए औसत से ऊपर है.

2. लेकिन वेतन वृद्धि रुक गई है
राष्ट्रपति के तौर पर पुतिन के पहले कार्यकाल के दौरान मजूदरी में वार्षिक 10% से ज्यादा की वृद्धि हुई थी. साल 2012 में फिर से कार्यालय शुरू होने के बाद से, जिसमें आगे वो प्रधानमंत्री भी रहे, संकट और आर्थिक प्रतिबंधों के साथ ये बढ़ोतरी भ्रामक साबित हुई.
2011 और 2014 के बीच कर व अन्य शुल्क चुकाने के बाद बचने वाली आय में 11% की वृद्धि हुई और पुतिन के शासन में रूस की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में काफी वृद्धि हुई है.
3. सुख-सुविधा के साधन बढ़े
लाडा कार के साथ रूस प्यार अब भी कायम है और लाडा ने 2017 में कुल 1,595,737 कारों में से 311,588 कारों की बिक्री की है.

कार रखने के मामले में रूस पॉलैंड और हंगरी के बराबर है लेकिन यह अपने पड़ोसी फिनलैंड से पीछे है. यूरोपियन आॅटोमोबाइलन मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के मुताबिक फिनलैंड में 100 घरों पर 76 कारे हैं.
4. रूस का आइकिआ के लिए प्यार
मास्को के पास खीमकी में मेगा ब्रांडेड शॉपिंग सेंटर के हिस्से के तौर पर आइकिआ का पहला स्टोर साल 2000 में खुला था. यह जल्द ही आइकिआ के दुनियाभर में मौजूद शीर्ष 10 ग्रॉसिंग स्टोर्स में शामिल हो गया.
कंपनी के अब पूरे देश में 14 स्टोर हैं. इनमें से तीन अकेले मॉस्को के आसपास हैं.

यह सिर्फ सामान बेचने तक सीमित नहीं है. आइकिआ ने अपनी एक ऑनलाइन मैगजीन बंद कर दी थी क्योंकि उसे डर था कि ये पुतिन के उस विवादित कानून को तोड़ रही है जिसमें नाबालिगों को समलैंगिक मूल्यों को बढ़ावा देने पर रोक लगाई गई है.
साथ ही कंपनी रूस में काम करते हुए अपने मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी मूल्यों को बनाए रखने के लिए भी संघर्ष कर रही है.
5. और शैम्पेन
कितने रूसी शराब पीते हैं इसे लेकर कुछ विवाद है. सरकारी आंकड़े एक बूंद दिखाते हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री 80 प्रतिशत का दावा नहीं करते.
पश्चिमी बीयर और वाइन कल्चर के कारण वोदका पीने वालों में कमी आई है. एक समय पर बीयर रूस में लगभग सॉफ्ट ड्रिंक कहलाती थी लेकिन अब कुछ लोगो अपनी खुद की शराब बनाने लगे हैं.

6. हर जगह की तरह इंटरनेट की उड़ान
रूस के इंटरनेट के अपने दिग्गज हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीके सबसे ज्यादा यूजर्स वाली साइट है जिसके फेसबुक के दो करोड़ यूजर्स के मुकाबले 9 करोड़ यूजर्स हैं.
इसके बाद सर्च इंजन यैंडेक्स का नाम आता है. रूसी भाषा में होने के कारण इससे गूगल सर्च में फायदा मिलता है.
7. सर्कस में आई गिरावट
मोस्को स्टेट सर्कस की तरह रूसी सर्कस के 60 से ज्यादा स्थायी स्थान राष्ट्रीय संस्थान है. लेकिन, इन्हें सर्क्यू दु सोलेल जैसे पश्चिमी प्रतिद्वंद्वियों से कड़ी चुनौती मिल रही है.
और 2010 से सर्कस देखने वालों की संख्या भी 60 प्रतिशत तक कम हुई है.
हालांकि, इस कमी को एक कारण नहीं है. पसंद में बदलाव, प्रतिस्पर्धियों की तरफ आकर्षण और इंटरनेट का विकास ये सभी महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं.

8. रूस की बढ़ती जनसंख्या
राष्ट्रपति पुतिन का एक बड़ा लक्ष्य आबादी में आई गिरावट को कम करना है जो 1991 में साम्यवाद की समाप्ति के आसपास शुरू हुआ था.
2012 में राष्ट्रपति बनने से पहले पुतिन ने जन्म दर बढ़ाने के लिए करीब 34 खरब रुपये खर्च करने का प्रस्ताव किया था.
इत्तेफाक से साल 2012 में रूस में मृत्य दर के मुकाबले जन्म दर बढ़ गई.
जब यह 2017 में कम हुई तो पुतिन के विरोधियों को उन पर हमला करने का मौका मिल गया. उन्होंने साल 2016-2017 के बीच 10.6 प्रतिशत की कमी का उदाहरण दिया. असल में 12.9 से 11.5 जन्म प्रति हजार लोगों का बदलाव.
9. पब्लिक लाइब्रेरी
अन्य जगहों की तरह वेबसाइट्स के आने से लाइब्रेरी की तरफ लोगों की रूचि कम हुई है.

पुतिन का सेना पर सबसे अधिक खर्च
एक मजबूत सैन्य शक्ति रूस की हमेशा से पहचान रही है, लेकिन शीत युद्ध के दौरान जब सोवियत यूनियन ने अपनी सेना को अमरीका के बराबर करने की कोशिश की तो उसका बहुत पैसा उसमें खर्च हो गया और वह एक तरह से दीवालया होने की कगार पर आ खड़ा हुआ.
सोवियत यूनियन के बिखराव ने सशस्त्र बलों की स्थिति खराब कर दी क्योंकि सेना के बजट में भी कटौती करनी पड़ी थी. कई उपकरणों और हथियारों में भी गड़बड़ियां हो गईं जिस वजह से सेना का मनोबल भी टूट गया