मिश्रिख (सीतापुर), सरकार की चिकित्सा व्यवस्था पर आशायें पलीता लगा रहीं हैं। चिकित्सा विभाग में कार्यरत आशाओं के दबदबे का आलम यह है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात चिकित्सा अधीक्षक कोई कार्रवाई नही कर पा रहे है। वहीं आशा बहुओं द्वारा गर्भवती महिलाओं से की जा रही ठगी से जच्चा-बच्चा की जान भी जा रही है।
हो क्या रहा है-: कोई भी आशा बहू लगभग 40 प्रतिशत कमीशन लेकर प्राइवेट अल्ट्रासाउंड सेंटर पर जाकर अपनी मर्जी से जांच करा लेती है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि एक ही मरीज का कई-कई बार अल्ट्रासाउंड कराया जाता है जिससे ज्यादा से ज्यादा कमीशन लिया जा सके। (यदि मरीज से सात सौ रुपये शुल्क जमा कराती है तो 300 रुपये कमीशन होता है)
क्या है कोड वर्ड ‘ए-सेल्फ’- जब भी अल्ट्रासाउंड सेंटर द्वारा मरीज की रिपोर्ट दी जाती है तो उसमें मरीज की डिटेल नाम, उम्र,लिंग, रिपोर्टिंग की डेट के साथ किस डॉक्टर द्वारा रिफर किया गया है उसका नाम अंकित किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड सेंटरों ने कम्प्टीशन के फेर में सरकारी अस्पतालों में कार्यरत आशाओं को अच्छा कमीशन देकर एजेंटों की तरह कार्य कराया जा रहा है। जिसके शिकार गावों में रहने वाले गरीब,अशिक्षित और कमजोर तबके के लोग आते है।
जब कोई आशा बहू किसी मरीज को लेकर अल्ट्रासाउंड सेंटर पर जाती है तो मरीज की दर्ज डिटेल में रिफर्ड में डॉक्टर के स्थान पर ‘ए-सेल्फ (A-Self)‘ लिखा जाता है जिसमें ‘ए (A)‘ का अर्थ ‘आशा(ASHA)‘ से हो सकता है। इसी कोड के आधार पर बाद में आशा को कमीशन मिल जाता है।
होना क्या चाहिये-: कोई भी अल्ट्रासाउंड बगैर डॉक्टर की लिखित सलाह के नही किया जा सकता। ध्यान रखा जाता है कि अल्ट्रासाउंड की किरणों के विकरण से जच्चा-बच्चा को नुकसान न हो।




